
विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है इस देश को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के प्रति स्तर और राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु 1972 में इसकी शुरुआत की थी।
इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र ने महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण मिलन में चर्चा के बाद शुरू किया था और 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
इस वर्ष की थीम समय और प्रकृति आज विश्व पर्यावरण दिवस है। आप सभी को विश्व पर्यावरण दिवस की बधाइयाँ आज सब विश्व पर्यावरण दिवस की बधाई देंगे लेकिन अगर असल में बधाई देनी है तो हमें पर्यावरण को बचाना होगा। प्रदूषण की वजह से हमारा क्या हाल है ये तो आप सब जानते ही हैं।
नदियों की कलकल ध्वनि,चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़,खेत खलिहान और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम दृश्य यही वो चीज़ें हैं जो हमारे पहाड़ को और जगहों से अलग बनाती हैं,लेकिन धीरे धीरे हम अपनी विरासत को खोते जा रहे हैं। नदियाँ जहां सूख रही हैं,पक्षियों की संख्या लगातार कम हो रही है और खेत बंजर पड़े हैं। अगर एसा ही चलता रहा तो ये सारी चीज़ें विलुप्त हो जाएंगी। पहले जब पत्थरों के मकान बनाए जाते थे,तो उनमें पक्षियों के घोसले बनाने के लिए अलग से छेद बनाए जाते थे ताकि चिड़ियाऐं उसमें अपना घोसला बनाएं। जब चिड़ियाऐं उसमें घोसला बनाती थी तो उसे काफ़ी शुभ माना जाता था।
लेकिन अब सीमेंट के मकान बन गए हैं उनमें चिड़ियाऐं घोसला बनाएं तो बनाएं कहां? पहले जब सुबह होती थी तो हमें जगाने चिड़ियाऐं आती थी। तब लोग अलार्म बजने पे नहीं चिड़ियाओं के चहचहाने पर जागते थे। लेकिन आज हमें जागने के लिए अलार्म लगाना पड़ता है।पहले कठफोड़वा अपनी तीखी चोंच से पेड़ों पर छेद करता था जिसकी टक-टक की आवाज़ काफ़ी दूर तक सुनाई देती थी। कोयल की मधुर आवाज़ मन को भाती थी। चील कौवे आसमान में उड़ते हुए आसमान को सजाते थे। कहां गए वो सब आज? पेड़ों के कटान की वजह से वातावरण तो प्रदूषित होता ही है लेकिन इससे पक्षियों और जानवरों पर भी काफ़ी असर होता है। हम सिर्फ एक पेड़ नहीं काटते उसमें पल रहे कई पक्षियों के परिवारों को भी हम खत्म कर देते हैं। अगर कोई हमारे परिवार को छूने तक की बात भी करता है तो हम उसे मारने पर उतर आते हैं। लेकिन हम तो इनका पूरा परिवार खत्म कर देते हैं तो सोचो कि इन्हें कैसा लगता होगा। ये पक्षियाँ तो हमारा कुछ बिगाड़ती भी नहीं हैं। अगर करती हैं तो हमारे लिए कुछ अच्छा ही करती हैं। साइंस हम सबने पढ़ी है। इको सिस्टम के बारे में हम सभी जानते हैं। हम यह भी जानते हैं कि एक दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। लेकिन फ़िर भी हम इस पर कोई ध्यान नहीं देते। अगर हमने अपनी पढ़ी हुई चीज़ों को अपने दैनिक जीवन में लागू ही नहीं किया तो एसी पढ़ाई का क्या फायदा? जब कोई इंसान किसी दूसरे पर जुल्म करता है तो उसे कोर्ट सजा देता है। लेकिन जो हम इतने समय से पशु-पक्षियों,पेड़ों पर जुल्म कर रहें हैं,उनको खत्म कर रहे हैं उसका क्या? यह प्रकृति ये सारी चीज़ें हमने नहीं बनाई है,तो इसे उजाड़ने का हक भी हमें नहीं है। जो हम खो चुके हैं उसे तो वापस नहीं ला सकते,लेकिन जो बचा है उसे ज़रूर बचा सकते हैं। पिछले कुछ सालों में करीब 1000 ज़्यादा पक्षियों की प्रजातीयाँ खत्म हो चुकी हैं और कई जानवर खत्म हो चुके हैं,हम अब भी नहीं सुधरे तो कुछ समय बाद इस धरती पर से हमारा अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा। जब तक यह प्रकृति है तब तक ही हमारा भी अस्तित्व है। इस बात पर अमल ज़रूर करें और प्रकृति को बचाने में अपना सहयोग दें। ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाएँ पर्यावरण को स्वच्छ रखें।
उम्मीद है आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा।
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