उत्तराखंड का लोक पर्व “घी त्यार” 2020
Ghee Festival Uttarakhand 2020 में आज आपको उत्तराखंड के एक और त्यौहार जिसे “घी त्यार” यानि इसे घी का त्यौहार (घृत संक्रांति ) भी कहते है .इस बारे में बताने जा रहा हु .आखिर उत्तराखंड में घी त्यार त्यौहार क्यों मनाया जाता है और कैसे मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है .पूरा पड़े आनंद उठाये रंगीलो पहाड़ ब्लॉग पर ऐसे ही नई-नई जानकारी के लिए .
घी त्यौहार(घृत संक्रांति ) क्या है
बहुत खूब आप रूचि रखते है नई जानकारी जानने के लिए आपकी बहुत अच्छी आदत है .उत्तराखंड कृषि आधारित राज्य है और प्रकति किसानो का उत्तराखंड के लोक जीवन में अत्यधीक महत्व रहा है .हमारे पंचांग के अनुसार जब सूर्य एक राशि में संचरण करते हुए जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे ही संक्रांति कहते है .इस तरह 12 संक्रांतिया होती है जिनमे इन्ही त्यौहार में एक घी त्यार भी है .
उत्तराखंड में घी त्यार क्यों मनाया जाता है
देवभूमि उत्तराखंड में हिंदी माह की प्रत्येक 1गते(pait) यानि संक्रांति को लोक पर्व के दिन मानते है .भाद्रपद (भादो) महीने की संक्रांति जिसे सिंह संक्रांति भी कहते है| इस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है और भाद्रपद संक्रांति को ही घी त्यार के रूप में मनाया जाता है.
मेने आपको उत्तराखंड के हरेला त्यौहार के बारे में बताया है यह त्यौहार भी उसी तरह आधारित है. हरेला जिस तरह बीच को बोने और वर्षा ऋतु का प्रतिक है .घी त्यौहार भी अंकुरित हो चुकी फसल में बालिया के लग जाने पर मनाये जाने वाला त्यौहार है .बरसात के मौसम में फसले और फल ,सब्जिया उगने लगते है. किसान अच्छी फसलो की कामना करते हुए ख़ुशी मनाते है.
घी त्यौहार कैसे मनाते है .
हम जान चुके है क्यों त्यौहार मनाया जाता है चलिए अब इसे कैसे मनाते है .बरसात के मौसम में फसलो में लगी बालियो को किसान अपने घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर या दोनों और गौ माता (गाय) का गोबर से चिपकाते है.घी त्यौहार के के समय पहले बोई गई फसलो पर बालिया लहलहाना शुरू कर देती है| फल भी तैयार होने लगते है.इस वजह से त्यौहार मनाया जाता है.
उत्तराखंड में घी त्यार का महत्व
किसानो के लिए घी त्यौहार बहुत महत्व रखता है और इस दिन इसे उत्तराखंड में गढ़वाली(Garhwal),कुमाउनी(Kumaon) लोग घी खाना जरुरी मानते है .
त्यौहार के दिन घी खाना जरुरी क्यों है
मुझे यह जानकारी काफी रोचक लगी घी खाना क्यों जरुरी है .और आपको भी रोचक लगेगी.इसके पीछे एक डर या रहस्य छुपा है .पहाड़ो में यह बात मानी जाती है.कि जो घी संक्रांति या आज के दिन जो व्यक्ति घी का सेवन नहीं करता है.वह अगले जन्म में घनेल(घोंगा)यानि Snail बनता है.

इस वजह से नवजात बच्चो के सिर और पांव के तलुवो में भी घी लगाया जाता है .और जीभ में भी घी रखा जाता है.परिवार के हर सदस्य घी का सेवन करते है.
घी त्यौहार के दिन मुख्य व्यंजन
अब तो धीरे-धीरे यह त्यौहार लोग कम मनाते है .लेकिन यह हमारी संस्कृति का प्रतीक है. जरुर मनाना चाहिए .इस दिन बेडू की रोटी और उरद की दाल अरबी के पत्ते (गाबा) कहते है सब्जी बनती है|



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आज मुझे बताने में बहुत आनन्द आया है उम्मीद करता हु आपको भी उत्तराखंड में घी त्यौहार क्यों मनाया जाता है और महत्व क्या है .सभी जानकारी बहुत अच्छी लगी होगी .कमेंट जरुर करे .चलिय विदा लेता हु मिलते है किसी और ब्लॉग पर आपका हर दिन शुभ हो –प्रदीप गैलाकोटी
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