
विलुप्ति की ओर हमारी कुमाऊँनी भाषा के बारे में कुछ खास बिंदु
हमर भाषा हमेर शान छू ये शब्द अब धीरे धीरे विलुप्ति की ओर जा रहे है। आज हम अपनी भाषा को दिन प्रतिदिन बहुते जा रहे है। क्या यह उचित है ?
कुछ सुभचिंतको को मेरे शब्दों से ठेश पहुंचे में क्षमाँ प्राथी हु।
जिस तरह जिंदगी की रफ़्तार तेज हो रही है। हम अपने संस्कृति से जुडी चीजों को भूलते जा रहे है यह हम सब के लिए निराशा पूर्ण है। आज लगभग राज्य में 50% लोगो को कुमाऊँनी भाषा आती है और सिर्फ 30% लोग ही अपनी भाषा का उपयोग करते है। आइये जानते है
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- एक तरीके से देखे तो उचित है हम सबका वातावरण कुछ अलग है जिसमे हमें अलग भाषा का उपयोग करना पड़ता है जैसे -स्कूल , कॉलेज ,ऑफिस आदि।
- दूसरे तरीके से समझे हम अपने उस वातावरण को भूल रहे है जहा हमारा जन्म का उद्गम हुआ।
प्रभाव
इसका प्रभाव युवा पीढ़ी व आने वाली पीढ़ियों पर जरूर पड़ेगा आज की अधिकतर युवा पीढ़ी को ये भी पता नहीं हमारी जन्म भाषा क्या है और न ही उनको अपनी भाषा आती है।
यह पलायन का मुख्य कारण है।अपने बच्चो को अपनी भाषा का ज्ञान जरुर दे ,क्या हमें अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए अपनी राय जरुर दे हमें
उत्तराखंड की प्रमुख पारंपरिक आभूषण और पहनावा और संस्कृति
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