देवभूमि उत्तराखंड का खुबसूरत जिला अल्मोड़ा
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा जिसे किलो की नगरी भी कहा जाता है और चारो ओर पर्वतों से घिरा हुआ और पर्यटन स्थल का मुख्य केंद्र भी है आज हम बात करने जा रहे है सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के बारे में कुछ खास ब्लॉग कुछ अलग होने होना है अंत तक पड़े मजा आएगा
अल्मोड़ा का इतिहास

कुमाऊं का पहला राजवंश कत्यूरी था जिनका शासनकाल 8 वी शताब्दी का रहा हे। इसके पश्चात यहाँ पर अधिकतर चंद्रवंशी राजाओ ने राज्य किया जिनका शासनकाल 10 वी से 13 वी शताब्दी तक चला। इस वंश का सबसे वीर और विद्वान राजा रद्रचन्द्र था. किन्तु उसके बाद धीरे धीरे चन्द्रवंश का पतन होने लगा और कुमाऊं का सारा राज्य एक बार फिर छोटे छोटे रजवाड़ो में छिन्न भिन्न हो गया।इसके पश्चात गोरखा राजाओ ने 1790 में कुमाऊं के राजाओ को हराकर यहाँ पर कठोरता से शासन किया। इस नरपता की याद आज भी कुमाउनी लोग गोरख्याणी नाम से करते हे। कुमाऊं को गोरखाओसे मुक्त कराया गया ने 1815 ई ० इ फिर अंग्रेजी सहायता जिससे नैनीताल जनपद का समूचा छेत्र अंग्रेजो के अधीन रहा. अंग्रेजो का लालमंडी किला।जहा गोरखा और अंगेजो सैनिको के बिच युद्ध हुआ था। जब भी जीर्ण अवस्था में विद्यमान हे। इस प्रकार देश की स्वाधीनता के साथ साथ कुमाऊं को भी विदेशी शासन तथा राजसत्ता से मुक्ति मिली।
ऐतिहासिक परंपरा साथ साथ अल्मोड़ा अपने अतीत गौरव के लिए भी विशेष मन जाता हे। इसका उल्लेख स्कन्द पुराण के मानसखंड में भी किया हे इसके अनुशार अल्मोड़ा कोशी (कौशिका) और सुयाल (शाल्मली )नामक दो नदियों के बिच बेस रमणीय पर्वत के रूप में बसा हुआ हे। यहाँ से 13 km दूर कस्यप पर्वत पर शुभ -निशुम्भ कौशिका देवी का मंदिर हे। स्कन्द पुराण के अनुशार अल्मोड़ा में ही विष्णु के कर्म अवांतर उसकी उत्पत्ति का वर्णन हुआ हे । अयोध्या नरेश ऋतुपर्ण , राम , लक्समन और सीता ने भी कुर्मांचल की यात्रा की थी।दक्ष यज्ञ के पश्चात शिवजी ने अल्मोड़ा के निकट जागेश्वर नामक स्थान में तपस्या की थी और यही कार्तिकेय का जन्म हुआ था।



पर्वत शिशु
अल्मोड़ा के चारो और ऊचे ऊचे हिमशिखर खड़े हे। जिससे इसे पर्वत शिशु कह सकते हे। बस्ती से चार km की दुरी पर कसार देवी का मंदिर हे। इस मंदिर से नंदादेवी , नीलकंठ ,चौखम्बा ,हठी पर्वत ,गौरी पर्वत ,नंदाकोट,त्रिशूल और कमेठ जैसी विख्यात चोटिया देखने को मिलता हे। अल्मोड़ा के न्निकट निकट से भी हिमालय का सुन्दर नजारा देखने को मिलता हे। इसके अतिरिक्त यहाँ हिरदुंगरी, ग्रेनाइट हिल , ब्रैथ एंडकार्नर ,नंदादेवी मंदिर , स्नोव्यू और गांधी पार्क और मोहनजोशी पार्क भी देखने को मिलता हे। अल्मोड़ा के नाम के साथ अमेरिकन चित्रकार प्यूरस्टर का नाम भी विशेष रूप से जुड़ा हे। जिसने यहाँ के स्नोव्यू को अपना निवास स्थल बनाया। अल्मोड़ा का गोविन्द बल्लभ पंत राजकीय सग्रहालय भी कला प्रेमियों तथा इतिहास व पुरातत्वा के लिए एक नविन आकर्सण का केंद्र बना हुआ हे।
माँ कौमारी देवी : कौमारी देवी गुफा मंदिर की कहानी अल्मोड़ा ,उत्तराखंड
अनोखा त्योहार नंदा देवी
यहाँ की सुंदरता के साथ अल्मोड़ा अपनी प्राचीन कुमाउनी संस्कृति का भी केंद्र हे। नंदा अस्टमी कुमाऊं का एक विशेष त्योहार हज जो भाद्रप सितम्बर में पड़ता हे। तथा मैदानों में राधा अष्ठमी के नाम से प्रशिद्ध हे।इस दिन नंदादेवी की पूजा करके इसका डोला यानि रथ निकाला जाता है। गोल दायरे में इकट्ठे लोगो से हुड़के की ताल पर लोकगीतों की धुनें उठती हे।
इसे मेले का मुख्य आकर्षण हे- केले के दो पेड़ो से बनाई गई भव्य मूर्ति। वास्तव में नंदाकोट पर्वत -शिखर कुमाऊं के सभी स्थानों से दिखाई देता हे। इसका आधार मानकर शायद नंदादेवी के इस मेले का आयोजन किया जाता हे। कुमाऊं के सभी भागो के लोग अल्मोड़ा के मंदिर में इसको देखने के लिए आते हे। अल्मोड़ा में नंदा देवी के दिन काशिपुर के प्राचीन राजवंश के लोग आते हे। और इस मेले का उद्घाटन उन्ही के द्वारा होता हे. कुछ लोगो का विश्वास हे की नंदादेवी और उसकी बहन सुनंदा इसी राजवंश की कन्याये थी। कुमाऊं के सांस्कृतिक जीवन की एक जलक देखनी होतो तो अल्मोड़ा के नंदादेवी मेले के दिन उसे सुविधा से देखा जा सकता है।इस त्योहार के अवशर पर कभी किसी समय राजा के द्वारा बलिष्ठ भैसे की बलि देने का भी विशे महत्व रहा हेआजकल यहाँ मेला उत्तराखंड के विभिन्न इलाको में लगता हे जैसे –नैनीताल , भवाली , रानीखेत आदि जगहों में लगता हे। अब यह पर्व कुमाऊं क्षेत्र के लोक संस्कृति की पहचान तथा विरासत बन गई हे।
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