अष्टमी का दिन था उस दिन मुझे दादी के साथ मां कालिका के मन्दिर जाना था.दादी सुबह मेरे उठने से पहले ही नहा धोकर पूजा करने लग गई थी.उसके बाद मेरी मां ने मुझे उठाया और कहा कि(उठ आज जान नाते तुक आपुन आम दगे मंदिर उठ जल्दी ने ध्वे ले पानी गरम हेगयो) तुझे मन्दिर नहीं जाना आज अपनी अम्मा के साथ उठ जल्दी नहा धो ले पानी गरम हो गया है.उसके बाद मैं उठा और नहाया धोया तब तक दादी ने पूजा पाठ सब कर लिया था.उसके बाद हम मंदिर जाने को तैयार हुए.घर के ही आंगन से कुछ गुलाब और हजारी के फूल तोड़े और कुछ सामान लेकर जाने लगे मंदिर को.मां कालिका का मंदिर घर से करीब 4से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था.
मंदिर तक पहुंचने के लिए काफी चढ़ाई भी चढ़नी पड़ती थी.करीब 8 बजे हम घर से निकले और करीब 9:30 बजे दादी की उम्र थोड़ी ज्यादा थी और वह जल्दी चल नहीं सकती थी.हम रास्ते में रुकते रुकते गए इसलिए इतना टाइम लग गया.वैसे आम तौर पर मुझे अकेले वहां पहुंचने में करीब आधे घंटे का वक्त लगता था.मंदिर तक पहुंचने के बाद उसी के पास की दुकान से हमने बताशे तेल और पूजा की सामग्री खरीदी.उसके बाद हम मंदिर की ओर बड़े.
कांडा(बागेश्वर) स्थित मां कालिका का यह मंदिर का यह मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है और इस मंदिर की स्थापना स्वयं आदि गुरु शंकराचार्य जी ने कि थी.इसलिए यह मंदिर एक पौराणिक मंदिर है और ऐतिहासिक रूप से भी काफी महत्व रखता है इसके बाद हमने मंदिर में पूजा अर्चना की मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित की गई है उस समय यहां बली प्रथा भी प्रचलन में थी जिसमें पांच चीजों की बलि दी जाती थी.इनमें भेंसा,बकरी ,सुंवर, छिपकली आदि शामिल थी.मगर अब बली प्रथा यहां स्थानीय लोगों के कहने पर बंद कर दी गई है.
नवरात्रि में मंदिर में काफी भीड़ रहती है इसलिए मंदिर के अंदर तक पहुंचने में हमें काफी वक्त लग गया .पूजा अर्चना के बाद हमने मंदिर की परिक्रमा की.यहां आप मंदिर के अंदर ही परिक्रमा कर सकते हो. परिक्रमा करते समय मैंने देखा कि वहां मां दुर्गा के नौ रूप बने हुए थे और उनके नीचे ही उन देवियों के नाम भी लिखे हुए थे.मेरी दादी इं देवियों के बारे में जितना भी उन्हें पता था बता रही थी.परिक्रमा पूरी करने के बाद मंदिर से प्रसाद लेकर हम वहां से घर को प्रस्थान करने लगे .
मां कालिका मन्दिर दर्शन पुरे हुए और मुझे नया अनुभव मिला कैसी लगी आपको कहानी इसी प्रकार की जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहे .
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